Rajendra prasad short biography in hindi


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भारतरत्न प्राप्त डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1884-1963) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और राजनेता थे, जिनका जन्म जीरादेई, बिहार, भारत में हुआ था। ये स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने 1950 से 1962 तक सेवा की। प्रसाद जी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता थे। तो चलिए आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको डाॅ राजेंद्र प्रसाद जी के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे, ताकि आप परीक्षाओं में ज्यादा अंक प्राप्त कर सकें।

तो दोस्तों, आज के इस लेख में हमने “डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय” (Dr Rajendra Prasad biography in Hindi) के बारे में बताया है। इसमें हमने राजेन्द्र प्रसाद जी का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं एवं कृतियां, भाषा शैली और हिन्दी साहित्य में स्थान को विस्तार पूर्वक सरल भाषा में समझाया है।
इसके अलावा, इसमें हमने डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के जीवन से जुड़े उन सभी प्रश्नों के उत्तर दिए हैं जो अक्सर परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। यदि आप प्रसाद जी के जीवन से जुड़े उन सभी प्रश्नों के उत्तर के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।

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डॉ राजेंद्र प्रसाद का संक्षिप्त परिचय

विद्यार्थी ध्यान दें कि इसमें हमने राजेन्द्र प्रसाद जी की जीवनी के बारे में संक्षेप में एक सारणी के माध्यम से समझाया है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद की जीवनी –

नामडॉ० राजेन्द्र प्रसाद
अन्य नामराजेन्द्र बाबू
जन्म तिथि03 दिसम्बर, 1884 ई. में
जन्म स्थानबिहार के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में
मृत्यु तिथि28 फरवरी, 1963 ई. में
मृत्यु स्थानबिहार के पटना में, (भारत)
पिता का नामश्री महादेव सहाय
माता का नामश्रीमती कमलेश्वरी देवी
पत्नी का नामश्रीमती राजवंशी देवी
संतानमृत्युंजय प्रसाद (पुत्र)
शिक्षाएम. ए., एल. एल. बी., एल. एल. एम. (स्वर्ण पदक)
विद्यालयकोलकाता विश्वविद्यालय, प्रेसीडेंसी कॉलेज (कोलकाता)
पैशालेखक, वकील, राजनीतिज्ञ, संपादक
सम्पादनदेश पत्रिका
साहित्य कालआधुनिक काल (शुक्ल युग)
विधाएंलेखक, पत्रिका, भाषण, राजनेता
पार्टीभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
प्रसिद्धिभारत के प्रथम राष्ट्रपति
कार्यकाल26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962 तक
पुरस्कारभारत रत्न (सन् 1962 ई. में)
भाषासरल, सुबोध, खड़ीबोली
शैलीभाषण शैली, साहित्यिक शैली
प्रमुख रचनाएंभारतीय शिक्षा, गांधी जी की देन, साहित्य शिक्षा और संस्कृति, मेरी आत्मकथा, चम्पारन में महात्मा गाॅंधी, मेरे यूरोप के अनुभव आदि।
हिंदी साहित्य में स्थानराजनेता के रूप में अति-सम्मानित स्थान पर विराजमान होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य में भी इनका अति विशिष्ट स्थान है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। राजनीतिक जीवन की उपलब्धियों के साथ ही साथ इनका साहित्य में भी उल्लेखनीय योगदान रहा है। ये हिंदी के अनन्य भक्त थे।

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डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय

देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, जिन्हें राजेन्द्र बाबू के नाम से भी जाना जाता है, इनका जन्म 03 दिसम्बर, सन् 1884 ईस्वी को बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। इनका परिवार गाँव के सम्पन्न और प्रतिष्ठित कृषक परिवारों में से एक था। इन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) विश्वविद्यालय से एम०ए० और एल-एल० बी० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। ये प्रतिभासम्पन्न और मेधावी छात्र थे और परीक्षा में सदैव प्रथम आते थे। कुछ समय तक मुजफ्फरपुर कॉलेज में अध्यापन कार्य करने के पश्चात् ये पटना और कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील भी रहे। इनका झुकाव प्रारम्भ से ही राष्ट्रसेवा की ओर था। इसलिए सन् 1917 ई० में गांधी जी के आदर्शों और सिद्धान्तों से प्रभावित होकर इन्होंने चम्पारन के आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और वकालत छोड़कर पूर्णरूप से राष्ट्रीय स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े। अनेक बार जेल की यात्राएं भी करनी पड़ी। इन्होंने विदेश जाकर भारत के पक्ष को विश्व के सम्मुख रखा।

डॉ राजेंद्र प्रसाद जी तीन बार अखिल भारतीय कांग्रेस के सभापति तथा भारत के संविधान का निर्माण करने वाली सभा के सभापति चुने गये। राजनीतिक जीवन के अतिरिक्त बंगाल और बिहार में बाढ़ और भूकम्प के समय की गयी इनकी सामाजिक सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता। ‘सादा जीवन उच्च-विचार’ इनके जीवन का पूर्ण आदर्श था। इनकी प्रतिभा, कर्त्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी और निष्पक्षता से प्रभावित होकर इनको भारत गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया। इस पद को ये सन् 1952 से सन् 1962 ई० तक सुशोभित करते रहे।

भारत सरकार ने इनकी महानताओं के सम्मान स्वरूप देश की सर्वोच्च उपाधि ‘भारतरत्न’ से सन् 1962 ई० में इनको अलंकृत किया। जीवन भर राष्ट्र की निःस्वार्थ सेवा करते हुए। 28 फरवरी, सन् 1963 ईस्वी को इस महान् भारतीय का देहान्त हो गया।

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डॉ राजेंद्र प्रसाद का साहित्यिक परिचय

डॉ० राजेन्द्र प्रसाद एक कुशल लेखक भी थे। सामाजिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक विषयों पर इनके लेख बराबर निकलते रहते थे। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति पद को भी इन्होंने सुशोभित किया। ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ और ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ के माध्यम से हिन्दी को समृद्ध बनाने में योगदान देते रहे। इन्होंने ‘देश’ नामक पत्रिका का सफलतापूर्वक सम्पादन किया।

तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख एवं व्याख्यान भी प्रकाशित होते रहते थे। राजनीति, समाज, शिक्षा, संस्कृति, जन-सेवा आदि विषयों पर इन्होंने अनेक प्रभावपूर्ण निबन्धों की रचना की। जनसेवा, राष्ट्रीय भावना एवं सर्वजन हिताय की भावना ने इनके साहित्य को विशेष रूप से प्रभावित किया है। इनकी रचनाओं में उद्धरणों एवं उदाहरणों की प्रचुरता है। इनकी रचनाओं में अत्यन्त प्रभावपूर्ण भावाभिव्यक्ति देखने को मिलती है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद की प्रमुख रचनाएं

राजेन्द्र बाबू की प्रमुख रचनाओं का विवरण निम्नवत् है- (1) चम्पारन में महात्मा गांधी, (2) बापू के कदमों में, (3) मेरी आत्मकथा, (4) मेरे यूरोप के अनुभव, (5) साहित्य शिक्षा और संस्कृति, (6) भारतीय शिक्षा, (7) गांधीजी की देन, (8) साहित्य, (9) संस्कृति का अध्ययन, (10) खादी का अर्थशास्त्र आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

डॉ राजेंद्र प्रसाद की भाषा शैली

भाषा – राजेन्द्र बाबू की भाषा सहज, सरल, सुबोध खड़ीबोली है। इनकी भाषा व्यावहारिक है, इसलिए उसमें संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओं के शब्दों का समुचित प्रयोग हुआ है। ग्रामीण कहावतों एवं ग्रामीण शब्दों का भी प्रयोग किया है। इनकी भाषाओं में कहीं भी बनावटीपन की गन्ध नहीं आती। इन्हें आलंकारिक भाषा के प्रति भी मोह नहीं था। इस प्रकार इनकी भाषा सरल, सुबोध, स्वाभाविक और व्यवहारिक है।

शैली – डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की शैली के दो रूप प्राप्त होते हैं – (1). साहित्यिक शैली , (2). भाषण शैली ।

(अ) साहित्यिक शैली- अपने विभिन्न निबन्धों में डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी ने साहित्यिक शैली का प्रयोग किया है। तत्सम शब्दावली और सुगठित वाक्य विन्यास इस शैली की विशेषता है।
(ब) भाषण शैली- राजेन्द्र प्रसाद एक राष्ट्रीय नेता भी थे। उन्हें प्रायः भाषण देने पड़ते थे। इसी कारण उनके साहित्य में भाषण शैली के भी दर्शन होते हैं। उनकी भाषण शैली में देशी भाषाओं, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का भी पर्याप्त प्रयोग हुआ है। परन्तु भाषा में कहीं भी क्लिष्टता नहीं है।

उपर्युक्त मुख्य शैलियों के अतिरिक्त डाॅ राजेन्द्र प्रसाद जी की साहित्यिक रचनाओं में विवेचनात्मक, भावात्मक तथा आत्म- कथात्मक शैलियों का भी प्रयोग हुआ है।

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डॉ राजेंद्र प्रसाद का साहित्य में स्थान

हिन्दी साहित्य में स्थान- डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी सुलझे हुए राजनेता होने के साथ-साथ उच्चकोटि के विचारक, साहित्य-साधक और कुशल वक्ता थे। ये ‘सादी भाषा और गहन विचारक’ के रूप में सदैव स्मरण किये जाएँगे। हिन्दी की आत्मकथा विधा में इनकी पुस्तक ‘मेरी आत्मकथा’ का उल्लेखनीय स्थान है। ये हिन्दी के अनन्य सेवक और प्रबल प्रचारक थे। राजनेता के रूप में अति-सम्मानित स्थान पर विराजमान होने के साथ-साथ हिन्दी-साहित्य में भी इनका अति विशिष्ट स्थान है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद के पुरस्कार

  • राष्ट्रपति के रूप में 12 वर्ष के कार्यकाल के बाद सन् 1962 ई. में ये सेवानिवृत्त हो गए और फिर इन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
  • सन् 1937 ई. को इन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें ‘डी०-लिट्०’ (डाॅक्टर ऑफ़ लेटर्स) की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
  • पटना विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें ‘डॉ० ऑफ लिटरेचर’ की मानद डिग्री प्राप्त हुई।

भारतीय संस्कृति का सारांश

‘भारतीय संस्कृति’ डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की एक भाषण का अंश है। इसमें इन्होंने बताया है कि भारत जैसे विशाल देश में व्याप्त जीवन तथा रहन-सहन की विविधता में भी एकता के दर्शन होते हैं विभिन्न भाषाओं, जातियों एवं धर्मों की माणियों को एक सूत्र में पिरो कर रखने वाली हमारी भारतीय संस्कृति विशिष्ट है। डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के व्यक्तित्व की ही भांति इनकी भाषा भी अत्यंत सरल है जिसमें सरसता है नूतनता है तथा प्रवाह है।

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FAQs. डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के जीवन से जुड़े प्रश्न उत्तर

1. डॉ राजेंद्र प्रसाद क्यों प्रसिद्ध हैं?

डॉ. राजेंद्र प्रसाद (3 दिसंबर, 1884 – 28 फरवरी, 1963) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और राजनेता थे, जिनका जन्म ज़िरादेई, बिहार, भारत में हुआ था। वह स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने 1950 से 1962 तक सेवा की। प्रसाद जी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता थे। सन् 1962 ई० में भारत सरकार ने इनकी महानताओं के सम्मान स्वरूप देश की सर्वोच्च उपाधि ‘भारतरत्न’ से इनको अलंकृत किया था।

2. डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म कब और कहां हुआ था?

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 03 दिसम्बर, सन् 1884 ईस्वी को बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में हुआ था।

3. डॉ राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?

डॉ राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु 28 फरवरी, सन् 1967 ईस्वी को बिहार के पटना सदाकत आश्रम में एक लंबी बीमारी के कारण हुई थी।

4. डॉ राजेंद्र प्रसाद के माता पिता का नाम क्या था?

डॉ राजेंद्र प्रसाद के पिता का नाम श्री महादेव सहाय तथा माता का नाम श्रीमती कमलेश्वरी देवी था।

5. राजेंद्र प्रसाद की रचनाएं कौन कौन सी हैं?

डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित है- चम्पारन में महात्मा गांधी, बापू के कदमों में, मेरी आत्मकथा, मेरे यूरोप के अनुभव, साहित्य शिक्षा और संस्कृति, भारतीय शिक्षा, गांधीजी की देन, साहित्य, संस्कृति का अध्ययन, खादी का अर्थशास्त्र आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

6. भारत देश के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे?

डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे, जिनका कार्यकाल 1950 से 1962 तक रहा था।

7. डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम क्या थे?

डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे।

8. डॉ राजेंद्र प्रसाद कितनी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे?

डॉ राजेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन बार सभापति चुने गए थे।

9. डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारे में 10 लाइन लिखिए?

1. डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति एवं महान् स्वतंत्रता सेनानी थे।
2. इनका जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक गांव में हुआ था।
3. इनके पिता का नाम श्री महादेव सहाय तथा माता का नाम श्रीमती कमलेश्वरी देवी था।
4. इनके पिता संस्कृत और फारसी भाषा के बहुत बड़े ज्ञानी थे तथा माता धार्मिक महिला थी।
5. डॉ राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा इन्हीं के गांव जीरादेई में हुई थी।
6. इनका विवाह बाल्यकाल में लगभग 13 वर्ष की अवस्था में श्रीमती राजवंशी देवी से हो गया था।
7. डॉ राजेंद्र प्रसाद गांधीजी की विचारधाराओं से बहुत प्रभावित हुए, और इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
8. सन् 1962 ई. में अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए इन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया था।
9. डॉ राजेंद्र प्रसाद का निधन 28 फरवरी 1963 को पटना के सदाकत आश्रम में हुआ था।
10. भारतीय राजनीतिक इतिहास में आज ही इनकी छवि एक महान और विनम्र राष्ट्रपति के रूप में इन्हें याद किया जाता है।

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